भगवान गिरिधारी आरती

भगवान गिरिधारी आरती

॥ भगवान गिरिधारी आरती ॥

जय जय गिरिधारी प्रभु, जय जय गिरिधारी।

दानव-दल-बलहारी, गो-द्विज-हितकारी॥

जय जय गिरिधारी प्रभु, जय जय गिरिधारी।

जय गोविन्द दयानिधि, गोवर्धन-धारी।

वन्शीधर बनवारी ब्रज-जन-प्रियकारी॥

जय जय गिरिधारी प्रभु, जय जय गिरिधारी।

गणिका-गीध-अजामिल गजपति-भयहारी।

आरत-आरति-हारी, जग-मन्गल-कारी॥

जय जय गिरिधारी प्रभु, जय जय गिरिधारी।

गोपालक, गोपेश्वर, द्रौपदि-दुखदारी।

शबर-सुता-सुखकारी, गौतम-तिय तारी॥

जय जय गिरिधारी प्रभु, जय जय गिरिधारी।

जन-प्रह्लाद-प्रमोदक, नरहरि-तनु-धारी।

जन-मन-रञ्जनकारी, दिति-सुत-सन्हारी॥

जय जय गिरिधारी प्रभु, जय जय गिरिधारी।

टिट्टिभ-सुत-सन्रक्षक रक्षक मन्झारी।

पाण्डु-सुवन-शुभकारी कौरव-मद-हारी॥

जय जय गिरिधारी प्रभु, जय जय गिरिधारी।

मन्मथ मन्मथ मोहन, मुरली-रव-कारी।

वृन्दाविपिन-विहारी यमुना-तट-चारी॥

जय जय गिरिधारी प्रभु, जय जय गिरिधारी।

अघ-बक-बकी उधारक तृणावर्त-तारी।

बिधि-सुरपति-मदहारी, कन्स-मुक्तिकारी॥

जय जय गिरिधारी प्रभु, जय जय गिरिधारी।

शेष, महेश, सरस्वति गुन गावत हारी।

कल कीरति-बिस्तारी भक्त-भीति-हारी॥

जय जय गिरिधारी प्रभु, जय जय गिरिधारी।

नारायण शरणागत, अति अघ, अघहारी।

पद-रज पावनकारी चाहत चितहारी॥

जय जय गिरिधारी प्रभु, जय जय गिरिधारी।

आज का ज्योतिषीय विचार

“कर्म और ग्रह दोनों जीवन को गढ़ते हैं।”

— पंडित जगन्नाथ