प्रदोष व्रत: भगवान शिव की आराधना का समय
प्रदोष व्रत प्रत्येक महीने की कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है। यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है। शास्त्रों के अनुसार, प्रदोष काल (सूर्यास्त के बाद और रात्रि से पहले का समय) में भगवान शिव कैलाश पर्वत पर नृत्य करते हैं। इसलिए इस समय शिव जी की पूजा करने से सारे कष्ट और दोष दूर हो जाते हैं। कलयुग में इस व्रत को करना बहुत मंगलकारी माना जाता है और यह शिव कृपा प्रदान करता है।
अलग-अलग वार के अनुसार प्रदोष व्रत और उनके लाभ
प्रदोष व्रत का फल उसके वार (दिन) के अनुसार अलग-अलग होता है।
- रविवार: लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
- सोमवार: मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इसे सोम प्रदोषम भी कहते हैं।
- मंगलवार: सभी रोगों से मुक्ति मिलती है और स्वास्थ्य बेहतर होता है। इसे भौम प्रदोषम कहते हैं।
- बुधवार: हर तरह की कामना सिद्ध होती है।
- बृहस्पतिवार: शत्रुओं का नाश होता है।
- शुक्रवार: जीवन में सौभाग्य बढ़ता है और दांपत्य जीवन में सुख-शांति आती है।
- शनिवार: संतान प्राप्ति की चाह में यह व्रत किया जाता है। इसे शनि प्रदोषम कहते हैं।
प्रदोष व्रत की पूजा विधि
प्रदोष व्रत की पूजा शाम के समय, प्रदोष काल में की जाती है।
- सूर्योदय से पहले उठें: त्रयोदशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और साफ वस्त्र पहनें।
- पूजा की तैयारी: बेलपत्र, अक्षत, दीप, धूप, गंगाजल आदि से भगवान शिव की पूजा करें।
- निर्जल उपवास: इस व्रत में दिन भर कुछ खाया नहीं जाता है।
- शाम की पूजा: सूर्यास्त से कुछ देर पहले दोबारा स्नान करें और सफेद वस्त्र पहनें। स्वच्छ जल से पूजा स्थल को शुद्ध करें और गोबर से मंडप बनाएं।
- मंत्र जाप: उत्तर-पूर्व दिशा में मुख करके आसन पर बैठें। ‘ॐ नम: शिवाय’ मंत्र का जाप करें और शिव को जल चढ़ाएं।
प्रदोष व्रत का उद्यापन
जो भक्त 11 या 26 प्रदोष व्रत पूरे कर लेते हैं, उन्हें विधि-विधान से उद्यापन करना चाहिए। उद्यापन त्रयोदशी तिथि पर ही किया जाता है। इसमें हवन और भगवान शिव के मंत्रों का जाप किया जाता है। हवन के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान-दक्षिणा दी जाती है।
प्रदोष व्रत कथा
स्कंद पुराण में प्रदोष व्रत की एक कथा दी गई है, जिसमें एक ब्राह्मणी और एक राजकुमार की कहानी है। ऋषि शाण्डिल्य के कहने पर ब्राह्मणी और राजकुमार ने यह व्रत किया, जिसके प्रभाव से राजकुमार को उसका खोया हुआ राज्य वापस मिल गया। इस कथा से यह मान्यता स्थापित हुई कि जो भी व्यक्ति सच्चे मन से प्रदोष व्रत करता है, उसे जीवन में कभी दरिद्रता और कष्ट का सामना नहीं करना पड़ता।