दीवाली 2025: रोशनी और समृद्धि का महापर्व
दीवाली या दीपावली भारत के सबसे बड़े और सबसे प्रसिद्ध त्योहारों में से एक है। यह उत्सव सिर्फ एक दिन का नहीं, बल्कि पांच दिनों का होता है, जो धनतेरस से शुरू होकर भैया दूज पर समाप्त होता है। महाराष्ट्र जैसे कुछ राज्यों में, यह एक दिन पहले ही गोवत्स द्वादशी से शुरू हो जाता है। यह त्योहार देवी लक्ष्मी के साथ-साथ अन्य देवी-देवताओं की पूजा और विशेष अनुष्ठानों के लिए जाना जाता है।
दीवाली पूजा का महत्व
दीवाली उत्सव के पांच दिनों में, अमावस्या का दिन सबसे महत्वपूर्ण होता है। इस दिन को लक्ष्मी पूजा, लक्ष्मी-गणेश पूजा और दीवाली पूजा के नाम से जाना जाता है। यह पूजा न केवल घरों में, बल्कि व्यावसायिक प्रतिष्ठानों (commercial establishments) में भी की जाती है। पारंपरिक हिन्दू व्यापारियों के लिए यह दिन बेहद खास होता है। इस दिन देवी महाकाली की पूजा कर स्याही की बोतल और कलम को पवित्र किया जाता है, जबकि देवी सरस्वती की पूजा से नए बही-खातों को भी पवित्र किया जाता है।
लक्ष्मी पूजा का शुभ मुहूर्त
दीवाली के दिन लक्ष्मी पूजा का सबसे शुभ समय सूर्यास्त के बाद का होता है, जिसे प्रदोष काल कहा जाता है। इस दौरान अमावस्या तिथि का होना पूजा के लिए विशेष महत्व रखता है। इसीलिए, लक्ष्मी पूजा का शुभ मुहूर्त इसी प्रदोष काल के दौरान तय किया जाता है। यदि यह मुहूर्त थोड़े समय के लिए भी उपलब्ध हो, तो पूजा के लिए इसी को प्राथमिकता देनी चाहिए।