भद्रा कौन है और इसका महत्व क्या है?
जब भी हम किसी शुभ कार्य के लिए मुहूर्त की बात करते हैं, तो सबसे पहले भद्रा का नाम आता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भद्रा भगवान शनिदेव की बहन और सूर्य देव की पुत्री हैं। इनका स्वभाव काफी कठोर था, इसीलिए इन्हें पंचांग के एक प्रमुख अंग, विष्टि करण के रूप में मान्यता दी गई।
किसी भी शुभ या मांगलिक कार्य के लिए मुहूर्त देखते समय भद्रा काल का विशेष ध्यान रखा जाता है और भद्रा का समय छोड़कर ही कोई शुभ कार्य किया जाता है। हालांकि, कुछ विशेष कार्यों में भद्रा शुभ भी मानी जाती है।
भद्रा की ज्योतिषीय गणना
पंचांग के पांच मुख्य अंग होते हैं, जिनमें करण एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। कुल 11 करणों में से, सात चर (movable) और चार अचर (fixed) होते हैं। इन 11 करणों में से विष्टि करण को ही भद्रा कहा जाता है। चर होने के कारण यह हमेशा गतिशील रहती है, और इसीलिए किसी भी पंचांग की शुद्धता जांचते समय इसका विशेष महत्व होता है।
कैसे जानें भद्रा वास?
भद्रा का प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि उसका वास किस लोक में है। यह चंद्रमा की स्थिति पर आधारित होता है:
- मृत्युलोक (पृथ्वी लोक) पर भद्रा: जब चंद्रमा कर्क, सिंह, कुंभ और मीन राशि में होता है, तो भद्रा पृथ्वी लोक पर होती है। इस समय भद्रा का पूर्ण प्रभाव होता है और यह किसी भी शुभ कार्य के लिए अत्यंत हानिकारक मानी जाती है। ऐसे में किए गए कार्य या तो पूरे नहीं होते या उनमें रुकावटें आती हैं।
- स्वर्गलोक पर भद्रा: जब चंद्रमा मेष, वृषभ, मिथुन और वृश्चिक राशि में होता है, तो भद्रा स्वर्ग में होती है। इस स्थिति में भद्रा शुभ फल प्रदान करती है।
- पाताल लोक पर भद्रा: जब चंद्रमा कन्या, तुला, धनु और मकर राशि में होता है, तो भद्रा पाताल में मानी जाती है, और यह भी शुभ मानी जाती है।
भद्रा मुख और भद्रा पुच्छ
भद्रा काल को दो हिस्सों में बांटा गया है: भद्रा मुख और भद्रा पुच्छ।
- भद्रा मुख: यह भद्रा काल के शुरुआती 5 घड़ियों (लगभग 2 घंटे) का समय होता है। इसे अत्यंत अशुभ माना जाता है और इस दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए।
- भद्रा पुच्छ: यह भद्रा काल के अंत का 3 घड़ियों (लगभग 1 घंटा 15 मिनट) का समय होता है। भद्रा पुच्छ को शुभ माना गया है और बहुत आवश्यक होने पर इस समय कुछ कार्य किए जा सकते हैं।
महर्षि कश्यप के अनुसार, जो व्यक्ति सुखी जीवन चाहता है, उसे भद्रा काल के दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से उस कार्य का शुभ फल नष्ट हो जाता है।
भद्रा काल के दौरान न करने वाले कार्य
भद्रा काल में लगभग सभी शुभ और मांगलिक कार्यों को करना वर्जित माना गया है। इनमें प्रमुख हैं:
- विवाह, मुंडन या गृह प्रवेश जैसे संस्कार।
- कोई नया व्यवसाय शुरू करना।
- कोई शुभ यात्रा करना।
- रक्षाबंधन जैसे मांगलिक पर्व।
भद्रा काल में किए जाने वाले कार्य
भद्रा काल अशुभ कार्यों के लिए उपयुक्त माना जाता है। इस दौरान आप ये कार्य कर सकते हैं:
- शत्रु पर आक्रमण या मुकदमा शुरू करना।
- ऑपरेशन या अस्त्र-शस्त्र का प्रयोग।
- आग जलाना या किसी वस्तु को काटना।
भद्रा का परिहार और उपाय
ज्योतिष में भद्रा के दुष्प्रभावों से बचने के लिए कुछ उपाय बताए गए हैं:
- यदि भद्रा स्वर्ग या पाताल में है तो उसका कोई दोष नहीं होता।
- यदि दिन की भद्रा रात्रि में और रात्रि की भद्रा दिन में आ जाए, तो भी भद्रा दोष नहीं लगता और इसे शुभ माना जाता है।
- भद्रा के दुष्प्रभावों से बचने के लिए भगवान शिव की आराधना सबसे प्रभावी मानी जाती है।
- आप सुबह उठकर भद्रा के 12 नामों का स्मरण कर सकते हैं, जिससे भद्रा का अशुभ प्रभाव कम होता है। ये नाम हैं: धन्या, दधिमुखी, भद्रा, महामारी, खरानना, कालरात्रि, महारुद्रा, विष्टि, कुलपुत्रिका, भैरवी, महाकाली, और असुरक्षयकारी।
हमारा मानना है कि किसी भी कार्य को करने से पहले शुभ मुहूर्त का चुनाव करना और संबंधित उपायों का पालन करना आपके लिए सदैव श्रेयस्कर होता है।